आज कितना बदल गया है इंसान...?

गणतंत्र को बचाना है तो भ्रष्ट मंत्रियों को जनयुद्ध के जरिये सरे आम फांसी देनी होगी......

रविवार, 2 मई 2010

प्रधानमंत्री जी और राष्ट्रपति जी,कहिं ऐसा ना हो कि ---------?


जिस देश के ज्यादातर मंत्री शपथ लेकर भर्ष्टाचार में लिप्त हो, देश और जनता के साथ गद्दारी कर रहें हो और अपना और अपने चमचों का स्विस बैंक का अकाउंट भरने के साथ-साथ घर और गोदाम भी ,जनता का खून चूसकर और जनता का  जिन पैसों से (सरकारी खजाना) जनता कि मूल-भूत जरूरतें,जैसे रोटी,कपडा,एक छोटा सा मकान, शिक्षा,न्याय कि समुचित व्यवस्था,इत्यादि पूरी कि जानी चाहिए थी ,को लूटकर देश और देश कि जनता पर दुखों का पहाड़ गिराने का काम कर रही हो ,उस देश के आने वाले भविष्य कि रूप रेखा के बारे में सोचकर डर लगता है ?

कहा जाता है कि किसी भी देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ,उस देश का दिमाग होता है और सारी व्यवस्था शरीर / ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस देश का शरीर पूरी तरह सड़कर गलने के कगार पर पहुंचने वाला हो और उसके दिमाग को इस स्थिति के जिम्मेवारी से बरी कर दिया जाय ? ऐसा कदापि नहीं किया जा सकता /

क्या यह बातें इस ओर इशारा नहीं कर रही कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का खौप ,अब उतना नहीं रहा कि ,वह देश के किसी भी मंत्री को या देश के उच्च पदों पद बैठे जिम्मेवार अधिकारियों को उनकी जिम्मेवारी को उनके द्वारा पूरी ईमानदारी,नैतिकता,सत्य और जनकल्याण के लिए निभाने के लिए मजबूर कर सके /

यह किसी के नजर में हमारे द्वारा आलोचना का बेजा इस्तेमाल कहा जा सकता है लेकिन क्या एक ऐसे देश जिसका राष्ट्रपति एक महिला हो ,फिर भी एक लड़की को प्रतारित कर उसे मौत को गले लगाने वाले को 19 वषों बाद भी सजा ना हो ,न्यूज़ चेनलों के ऑफिस में एक महिला का बेदर्दी से अपमान किया जाय और महिला आयोग के नोटिस को कोई महत्व न्यूज़ चेनलों द्वारा नहीं दिया जाय, निश्चय कि यह देश और देश के महिला राष्ट्रपति के लिए भी शर्मनाक स्थिति है /

आज देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सूचना के अधिकार के तहत लाने के लिए याचिका का सहारा लेना पड़ता है जो न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था के लिए कदापि आदर्श स्थिति नहीं कहा जा सकता / आदर्श स्थिति तो वह होता जब इस तरह कि याचिका के स्वीकार होते ही देश के मुख्य न्यायाधीश याचिकाकर्ता को स्वयं पत्र लिखकर ,यह जवाब देते कि "आपने हमें एक अच्छी सलाह दी है और इस पर बिना बहस के ही मैं देश और जनता में पारदर्शिता लाने के लिए इसे तहे दिल से स्वीकार कर रहा हूँ " लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा ना होकर जनहित के फैसले के खिलाप सवोच्च न्यायालय द्वारा ही याचिका दायर कि गयी है / क्या यही है पंच परमेश्वर का सिधांत कि जनता पर लागु हो लेकिन पंच पर नहीं ? होना तो यह चाहिए कि जनता के निजी बातों को सूचना के दायरे से बाहर रखा जाता तो सही लेकिन न्यायाधीशों के निजी बातों को जानने का भी हक़ जनता को दिया जाना चाहिए / क्योंकि न्यायाधीशों का उच्च चरित्र का होना बहुत ही जरूरी है / अगर कोई न्यायाधीश भ्रष्टाचार में लिप्त होकर एक पत्नी के रहते हुए सुरा-सुन्दरी से खेलता है ,तो निश्चय ही यह किसी भी न्यायिक व्यवस्था के लिए पतन का कारण माना जायेगा / आज न्यायाधीशों के चरित्र पर ध्यान देना बेहद जरूरी है / 

आज देश में चारों तरफ कानून का पालन करने वालों को सताया या प्रतारित किया जाता है / कानून या कानून कि किसी भाषा को नहीं पढने वाले तथा उसे एक कमजोर व्यक्ति द्वारा अपनाया जाने वाली वस्तु मानने वाले लोगों पर, कोई भी किसी प्रकार के आरोपों पर हमारे देश में इतनी बड़ी पुलिस व्यवस्था,इतना बड़ा सुरक्षा एजेंसियों का जमावारा ,ह़र विभाग में उस विभाग का सतर्कता विभाग के होते हुए भी जाँच को जल्द से जल्द पूरा कर दोषियों को सजा नहीं दिया जाता / गोपनीय जानकारियां आम इमानदार जनता को तो नहीं बताई जाती ,लेकिन देश के गद्दारों तक बड़ी आसानी से पहुँच जाती है ,और क्या मजाल कि कोई कुछ बोल पाए /

देश में कानून व्यवस्था को लागू करने वाले लोग कानून को तोरने और बेचने कि सलाह अपराधियों और आसामाजिक तत्वों को देकर मोटी सरकारी तनख्वाह मिलने के बाबजूद रिश्वत से अपना घर और गोदाम भर रहें हैं / आखिर क्या कर रही है देश कि सतर्कता और सुरक्षा एजेंसियाँ ? कहिं इनमे भी गद्दारों कि बहुतायत तो नहीं हो गयी है ?

आज दिल्ली जो भारत सरकार के ठीक नाक के नीचे है वहाँ भी ह़र सरकारी विभाग में खुले आम भर्ष्टाचार का खेल खेला जा रहा है चाहे वह DTC के बसों का खरीद का मामला हो , DDA के घोटालों कि जिसमे 15 सालों से बने मकानों को भी जनता को अलाट नहीं किया जाता ,वो सिर्फ इसलिए कि उसके अधिकारी चोरी से किसी को ब्लैक में बेचकर ड्रा में अलोटेड दिखा सके , जिस खेल में दिल्ली के कुछ बड़े मंत्री भी शामिल हैं या कॉमनवेल्थ से सम्बंधित प्रोजेक्ट / CAG कि आपत्तियों के बाबजूद मुख्यमंत्री या किसी मंत्री पर गाज क्यों नहीं गिर रही है ? कहिं ये खेल सुनियोजित ढंग से पूरे लोकतंत्र के ताना-वाना को तहस-नहस करने के तहत देश के गद्दारों और भ्रष्ट लोगों द्वारा तो नहीं खेला जा रहा है ? क्योंकि इतिहाश और सबूत गवाह है कि जब किसी भी देश में आवारा पूँजी का नंगा खेल होता है तो उस देश के ढांचा को अपूर्णीय क्षति होती है / इन सब बातों को देखते हुए देश के आम जनता का श्रधा और विश्वाश देश कि व्यवस्था से पूरी तरह उठता जा रहा है / लेकिन कहिं ऐसा ना हो कि एक दिन इस देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर से भी श्रधा और विश्वास उठ जाये / निश्चय ही वो दिन इस देश और देश के गणतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक होगा /


9 टिप्‍पणियां:

  1. मित्र जयराम जी,

    कभी सोचता हूँ कि — "देश के शीर्ष नेताओं से हमारी अपेक्षाएँ वाजिब हैं. लेकिन सबकी अपनी क्षमताएँ होती हैं. आप लाख उनसे गुहार कर लें लेकिन वो हमारे इस स्वर को सुनने से रहे. उनके कान ऐसे बने ही नहीं कि वो प्रजा के आर्तनाद को सुन पायें. इसलिए हम केवल ये कर सकते हैं कि अपनी आने वाली पीढ़ी को ऐसे संस्कार दें कि वो भविष्य में अपने स्तर पर हमारे सोचे को फलीभूत कर पायें. जो ५ प्रतिशत सही हो रहा है उसे सराहकर उनके उत्साह में ५ प्रतिशत की और वृद्धि कर सकते हैं. "

    दुबारा सोचता हूँ तो लगता है कि — "कष्ट में हम आह ना करें तो दम घुट जाएगा. लेखक यदि कलम चलाना रोक दे तो वैचारिक-मंथन रुक जाएगा. इस वैचारिक-मंथन ने ही समाज को जागरूक रखा है." इसलिए मेरा अनुरोध है कि आप अपने स्तर पर वैचारिक-संघर्ष ज़ारी रखें.

    आपके ब्लॉग पर आकर लगता है कि एक सेनापति ऐसा है जो अपने मोर्चे पर हार नहीं मानेगा.

    बहुत सुखद अनुभूति होती है.

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  2. किसी भी समाज को भ्रष्ट बनाकर उसे गुलाम बनाया जा सकता है। भारत की व्यवस्था उसी दिशा में आगबढ़ रही है। शर्म आ रही है कि इस देश के न्यायधीश, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति पर सरेआम अंगुलियाँ उठायी जा रहीं हैं। और अंगुली उठाने के लिये पर्याप्त आधार है।

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  3. कवी कोविद,विज्ञान-विशारद, कलाकार ,पंडित ज्ञानी
    कनक नहीं,कल्पना ,ज्ञान ,उज्जवल चरित्र के अभिमानी
    इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा
    राजाओं से अधिक पूज्य ,जब तक न इन्हें वह मानेगा
    तब तक पड़ी आ में धरती ,इसी तरह अकुलायेगी
    चाहे जो भी करे दुखों से छूट नहीं वह पायेगी -

    हमारे राष्ट्र-कवि पहले ही कह गये

    अगर आपकी नजर में कोई सोरायसिस का मरीज हो तो हमारे पास भेजिए ,हम उसका फ्री ईलाज करेंगे दो महीने हमारे पास रहना होगा
    www.sahitya.merasamast.com

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  4. Apko Padhkar bahut achcha laga ki koi to hai jo aisa sochata hai aur uske bare men kuch karna bhi chta hai. Jahan bhee jod tod kee sarkar hog, bhrasht netaon ke sath hath mila hee lete hain log nahi to sarkar girne ka aur kursi chinane ke khatra jo hota hai.

    mere blog par aap aaye tippani me saraha bhee abhari hoon aisa hi sneh bana ke rakhen.

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  5. क्या कहने साहब
    जबाब नहीं निसंदेह
    यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है
    धन्यवाद..साधुवाद..साधुवाद
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  6. बेहतरीन मुद्दा उठाया आपने..साधुवाद !!

    ______________
    'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

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  7. बिलकुल सही बात लिखी ...कभी कभी लगता है की ये सब कुछ भगवान् भरोसे चल रहा है. पर कही न कही जिम्मेदारी समाज की भी है. हम ऐसे लोगो को चुनकर जो भेजते है और फिर खुद का काम पड़े तो हर जगह जुगाड़ की कोसिस में रहते है. आप जैसे २-४ लोग संवेदनशील हर जगह हो और सक्रियता के साथ जागरूकता बढ़ाते रहे तो परिवर्तन दूर नहीं.
    ७- और ८० के दसक के भारत और आज के भारत में अंतर तो आया है, बस छोटी छोटी कोशिस जारी रखिये और देखना विकास का घढा एक दिन भरा दिखेगा.

    नर हो न निराश करो मन को ..बस प्रयास करते रहो ...जैसे की में अपने बच्चो को बोलता हूँ ..."नेवर cry always try "

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