आज कितना बदल गया है इंसान...?

गणतंत्र को बचाना है तो भ्रष्ट मंत्रियों को जनयुद्ध के जरिये सरे आम फांसी देनी होगी......

शनिवार, 29 मई 2010

*आज इंसानियत खतरे में है*





*आज इंसानियत खतरे में है*


लोग कहते हैं,हिंदुत्व खतरे में है ,
वहीँ कुछ लोग कहते हैं ,इस्लाम खतरे में है /
यह कहते शर्म आती है कि इंसानियत खतरे में है /
ईमानदारी से कुछ करना नहीं चाहते ,
ब्लॉग पर इंसानियत कि मुहीम को लाना नहीं चाहते /
हम पूछते हैं क्या वह तुम्हारा भाई है ,
जिसने इंसानियत को शर्मसार करने कि कसम खाई है /
कैसे हो सकता वह तुम्हारा भाई ,
क्योंकि उसने तो तुम्हें भी मिटाकर ,
अपनी और सिर्फ अपनी स्वार्थ से लगाई है / 
वह ना है हिन्दू और ना ही मुसलमान /
वह तो है इंसान के रूप में एक हैवान /
जो माने जंगल का कानून ,
उसका ना कोई सगा और ना कोई दिन और इमान /
हम जड़ हैं जो नहीं पहचानते ,
हैवान है वो यह भी नहीं जानते /
इन्होने छीन ली गरीबों कि दो वक्त कि रोटी ,
एक दिन नोंच लेंगे ये इंसान कि बोटी-बोटी  /
आज कोई सच बोलना नहीं चाहता ,
जो बोलता है उसकी सुरक्षा कोई करना नहीं चाहता /

हम कहते हैं एक संगठन चाहिए ,
क्योंकि इंसानियत को आज सुरक्षा चाहिए /
संगठन लोगों के बने हैं,
स्वार्थ और हैवानियत में तने हैं /
संगठन बुड़ा नहीं होता ,
जब उसका नेक उद्देश्य होता ,
होता अगर पारदर्शी व जनकल्याण का वास्ता ,
नहीं कोई कारण जो ना हो उसका पूरे देश में रास्ता /
ब्लॉग और मीडिया तो बस साधन है ,
असल में तो इंसान का जमीर ही उसके कर्मों का वाहन है /
जमीर तब तक नहीं जगेगा ,
जब तक स्वार्थ और अहंकार का रंग नहीं उतरेगा /
हो सकता है सब कुछ सही ,
सही मायने में जब हो जायें हम सब एकजुट कहिं /
हैवान,गद्दार और स्वार्थी रोड़ा अटकायेंगें ,
लेकिन हमारी एकजुटता से वो भी बाद में पछ्तायेंगें /
सोचेंगे हम क्यों नहीं हुए साथ ,
ये तो है सच्ची इंसानियत कि बात /

हम कोई कवि नहीं है ,हमारा तो उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ इस देश और समाज में ज्यादा से ज्यादा लोगों को इंसानियत को बचाने तथा लुटेरों से इस देश को बचाने के लिए आगे आने का आग्रह करना है और जो आयेंगे उनके लिए एक सुरक्षा चक्र बनाना क्योंकि समुचित सुरक्षा के अभाव में भी लोग इंसानियत के कर्मों से पीछे हट रहें हैं /
 

बुधवार, 26 मई 2010

अपने बच्चों को रतन टाटा और मुकेश अम्बानी बनाने के बजाय शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसा बनाने कि कोशिस कीजिये --------?


आज पैसा बोलता है ,पैसा चुप रखता है ,पैसा किसी कि जान बचाता है ,पैसा किसी कि जान लेता है ,पैसा रिश्ते बनता और उखारता है ,पैसा मीडिया को सामाजिक सरोकार से दूर कर चुका है ,पैसा मंत्रियों को समाज व इंसानियत से दूर ले जाकर भ्रष्ट और अय्यास बना चुका है ,पैसा इंसानियत को अपने पैरों तले ह़र वक्त कुचल रहा है और यही नहीं पैसे कि भूख ने ना जाने किन किन गम्भीर सामाजिक पतन को जन्म दिया है / पैसे वाले सोचते हैं कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है और मेरा दावा है कि ये पैसे वाले पैसे से अपने लिए एक सच्ची पत्नी का प्यार भी नहीं खरीद सकते ?

इन सब बातों के मद्दे नजर हम क्या कोई भी यह कह सकता है कि यह पैसों कि वे वजह भूख सिर्फ और सिर्फ हमें इंसान से हैवान ही बना सकती है / पैसों कि भूख ने ज्यादातर बच्चों को इंसानी उसूलों से दूर धकेल दिया है और बच्चे अपने माता पिता का आदर करने के वजाय उनकी हत्या कि सुपारी देने लगे हैं / इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है कि पैसे कि भूख ने एक बेटे को अपने माँ बाप को एक सपेरे को सुपारी देकर सांप से कटवा कर मौत के लिए प्रेरित कर दिया /
इसलिए हमारा आपसे आग्रह और नम्र निवेदन है कि आप अपने बच्चों को इस पैसे कि भूख से दूर रखकर उसे एक सच्चा,अच्छा,इमानदार,देश भक्त और इंसान बनाने का प्रयास कीजिये / उसे इतना सुख और झूठा साधन मत मुहैया कीजिये जिसके लिए उसे एक दिन आपका भी जान लेना पर जाय / अपने बच्चों में सत्य,न्याय और इंसानियत के लिए मर-मिटने का जज्बा पैदा कीजिये ,जिससे वह आपको भी बुढ़ापे में इंसानियत के नाते एक इंसान को इंसान द्वारा दिया जाने वाला सम्मान दे सके /
हमारा प्रयास है कि आप खुद भी इसके लिए आज से रोज कुछ वक्त निकालें और अपने बच्चों को इस तरह कि नैतिक व्यवहार और जिम्मेवारियों कि शिक्षा दें / अगर आपको हमारी सहायता कि जरूरत हो तो हमें भी फोन करें / आप हमारे इस इंसानियत को जिन्दा करने कि मुहीम में हमारे साथ जुरकर honesty project के संस्थापक सदस्यों के परिवार में शामिल होकर देश और समाज में इंसानियत को जिन्दा करने के मुहीम में एकजुट हो सकते हैं / अभी इसी वक्त जुरने के लिए http://hprdindia.org/ekjut.html पर जाकर  हार्दिक रूप से जुरिये / कुछ दिनों बाद आपका नाम इसी वेब साईट पर संस्थापक सदस्य के रूप में आपको दिखेगा ,आपके पूरे विवरण के साथ / इस मुहीम में ह़र उस इंसान  का स्वागत है जो जुरने के बाद सिर्फ और सिर्फ इंसानी उसूलों पे चलने का जज्बा रखता है / याद रखिये मुसीबत में आपका सच्चा साथ सिर्फ एक इंसान ही दे सकता है कोई पैसे कि भूख रखने वाला रतन टाटा या मुकेश अम्बानी आपका साथ नहीं देगा / इसलिए हमारा सबसे आग्रह है कि अपने बच्चों को रतन टाटा और मुकेश अम्बानी बनाने के बजाय ,इंसानी उसूलों के लिए लड़ने  वाला शहीद भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रान्तिकारी व सच्चा स्वतंत्रता सेनानी बनाने का प्रयास कीजिये / आज देश और समाज को ऐसे लोगों कि ही जरूरत है /

सोमवार, 17 मई 2010

ये है हमारे गणतंत्र का असल रूप ----?


आज NDTV इंडिया पे एक न्यूज़ आया कि चंडीगढ़ के एक व्यक्ति ने अपनी बीस लाख कि गाड़ी के लिए VIP और लकी नंबर पाने के लिए दस लाख रूपये खर्च किये / क्योंकि पहले बोली लगी , जिसमे नंबर के लिए बोली में दस लाख कि बोली लगाने के बाद उसे नंबर दिया गया /

बोली लगाकर नंबर पाने वाला बहुत खुश दिखा और दिखना भी चाहिए / लेकिन मैं इस देश कि सरकार और उसकी व्यवस्था को देखकर शर्मसार हूँ कि ,जिस देश में सरकार खुद VIP पैसे के बल पर बनाने पे तुली है तो कोई सद्कर्म,ईमानदारी,देशभक्ति और सच्चाई को अपनाकर VIP नहीं बनने कि तकलीफ क्यों झेलेगा ? क्यों नहीं वह भ्रष्टाचार और बईमानी कि गंगा में बेशर्मी से डुबकी लगाकर VIP नंबर के साथ VIP बन जायेगा / 

शर्मनाक है यह कि ,सरकार सद्चरित्र और योग्यता को आधार बनाने के वजाय VIP नंबर के लिए बोली लगाती है / इसी वजह से लोग आज पढ़-लिखकर कुछ करें या ना करें लेकिन मालदार जरूर बनना चाहते हैं / मालदार कैसे बना जाता है वह जग जाहिर है / मेरे नजर में तो ,यह सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को खुला समर्थन है ,जिसकी बारीकी से जाँच करने कि जरूरत है तथा इन VIP नंबरों को पूरे देश में नए सिरे से परिभाषित करने कि भी जरूरत है / VIP नंबर सिर्फ उच्च चरित्र और योग्यता के प्रमाण पर ही मिले तो VIP  का मान होगा / वैसे सरकार और सरकारी व्यवस्था पैसे के लिए IAS ,IPS ,डॉक्टर,इंजिनियर इत्यादि को तो पहले ही नकली बना चुकी है ,जिसे देश कि हालत देखकर कोई भी समझ सकता है /

शनिवार, 15 मई 2010

RTI कानून और देश -----?


*RTI कानून और देश*

ये हमारा गणतंत्र /
जो बन गया है एक आतंकतंत्र  /
पहले आम लोगों को असुरक्षित करो ,
फिर सुरक्षा का ढोंग धरो /
RTI कानून आया ,
लोगों के जानने के हक़ को जगाया /
भ्रष्ट लोगों को ये नहीं भाया ,
भ्रष्टाचारी नहीं आये बाज ,
निकालने लगे इस कानून कि खाल /
बैठे इस गणतंत्र के बन सरताज ,
चोर,उचक्के,गद्दार और चालबाज /
ये करते जनता के पैसे से अय्यासी ,
इनको नहीं पसंद कोई पूछे ऐसी-वैसी /
इन्होने चलायी है अब एक चाल ,
RTI कानून में हो संशोधन हर हाल /
अगर हुआ कोई संशोधन फ़िलहाल ,
मर जायेगा RTI कानून बेहाल /
इस गणतंत्र का क्या है हाल ,
मंत्री खुशहाल जनता फटेहाल  /
जनता क्यों नहीं आती आगे ,
भागे चोर गद्दार पतली गली से पिछवारे /
अब तो एक ही कानून का सपना है ,
जिसे जनता को सड़कों पे ही बनाना है /
तब जाकर जनता होगी स्वतंत्र ,
और ये देश होगा असल गणतंत्र /
 

शनिवार, 8 मई 2010

पैसा,किसके बाप का पैसा ---?


सरकार के पास फ्री शिक्षा के लिए पैसे कि कमी है ,पढ़े लिखे व विभिन्न प्रकार के डिग्री जैसे डॉक्टर,इंजिनीअर,पत्रकारिता इत्यादि कि पढ़ाई पूरी करने के बाद भी खाली बैठे लोगों को नौकरी देने के लिए पैसे कि कमी है / आज बैंको में समय से एक काम नहीं हो रहा है,जहाँ कि लोग ह़र ड्राफ्ट के लिए पैसा देते हैं ,लेकिन स्टाफ कि कमी कि वजह से ड्राफ्ट लोगों को तिन से पाँच घंटे बाद मिलता है / गावों में तो स्टाफ कि कमी कि वजह से कभी-कभी कुछ काम को रोक दिया जाता है / यही नहीं ह़र जनकल्यानकारी कामों जैसे पानी,बिजली,सिचाई,स्कूल,सार्वजनिक शौचालय इत्यादि के लिए दिल्ली जो देश कि राजधानी है ,में भी सरकार फंड का रोना हमेशा रोती रहती है /

अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में फंड कि कमी है ? जवाब है नहीं फंड पर्याप्त हैं / फंड तो इतना है कि ह़र स्नातक को स्नातक के डिग्री पाने के बाद के पाँच वर्षों तक कम से कम तिन से पाँच हजार रुपया मासिक उसके आगे के पढ़ाई या किसी प्रकार के व्यवसायिक शोध के लिए दिया जा सकता है / जनता कि ह़र जरूरत कि चीजों को उनके गावं में मुहैया कराया जा सकता है /

अब एक बार फिर वही सवाल कि पैसा होते हुए भी जनता रोती और असहाय क्यों है ? इसका सबसे बड़ा कारण है मंत्रियों द्वारा खर्चों का और योजनाओं का खाका तैयार कर उस पैसे को बंदरबांट करना / दिल्ली में जब मैंने कुछ विधायकों से जानना चाहा कि क्या DTC के बसों कि खरीद से पहले उनसे किसी प्रकार कि राय ली गयी थी ? उनका जवाब था नहीं / अब जब जन प्रतिनिधियों को पूछे वगैर मुख्यमंत्री और पाँच मंत्री किसी अडबों कि खरीद कि रूप-रेखा बना कर ,खरीद को अंजाम देकर गोल-माल कर सकते है ,तो जनप्रतिनिधि जिनको ये सारा खेल पता होता है वो क्यों अपने निधि का पैसा ईमानदारी से जनकल्याण पर खर्च करेंगे / 

अब यह बात समझ से परे है और कोई बताये हमें कि ,जिस सरकारी खजाने को एक गरीब आदमी भी अगर एक पचास पैसे कि माचिस खरीदता है तो ,उस माचिस के पचास पैसे में पाँच पैसे का टैक्स देकर रोज ,ह़र वक्त भरता है और ये मंत्री उसे अपने बाप का माल समझ कर गोल-माल कर देते हैं और जनता भूखी-प्यासी तरपती रहती है / इन मंत्रियों का कुछ न कुछ तो करना ही होगा नहीं तो ये अमानुष आम लोगों को अपना ग्रास बना कर छोड़ेंगे / दोस्तों मैं आप लोगों से आग्रह कर रहा  हूँ कि,आप लोग अपने पैसों को(सरकारी खजाना)  इन लूटेरों से बचाने के लिए आगे आइये और अपने-अपने क्षेत्र में एकजुट होइये, नहीं तो ये भेडिये एक दिन आपके शरीर का खून भी लूट लेंगे /     

रविवार, 2 मई 2010

प्रधानमंत्री जी और राष्ट्रपति जी,कहिं ऐसा ना हो कि ---------?


जिस देश के ज्यादातर मंत्री शपथ लेकर भर्ष्टाचार में लिप्त हो, देश और जनता के साथ गद्दारी कर रहें हो और अपना और अपने चमचों का स्विस बैंक का अकाउंट भरने के साथ-साथ घर और गोदाम भी ,जनता का खून चूसकर और जनता का  जिन पैसों से (सरकारी खजाना) जनता कि मूल-भूत जरूरतें,जैसे रोटी,कपडा,एक छोटा सा मकान, शिक्षा,न्याय कि समुचित व्यवस्था,इत्यादि पूरी कि जानी चाहिए थी ,को लूटकर देश और देश कि जनता पर दुखों का पहाड़ गिराने का काम कर रही हो ,उस देश के आने वाले भविष्य कि रूप रेखा के बारे में सोचकर डर लगता है ?

कहा जाता है कि किसी भी देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ,उस देश का दिमाग होता है और सारी व्यवस्था शरीर / ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस देश का शरीर पूरी तरह सड़कर गलने के कगार पर पहुंचने वाला हो और उसके दिमाग को इस स्थिति के जिम्मेवारी से बरी कर दिया जाय ? ऐसा कदापि नहीं किया जा सकता /

क्या यह बातें इस ओर इशारा नहीं कर रही कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का खौप ,अब उतना नहीं रहा कि ,वह देश के किसी भी मंत्री को या देश के उच्च पदों पद बैठे जिम्मेवार अधिकारियों को उनकी जिम्मेवारी को उनके द्वारा पूरी ईमानदारी,नैतिकता,सत्य और जनकल्याण के लिए निभाने के लिए मजबूर कर सके /

यह किसी के नजर में हमारे द्वारा आलोचना का बेजा इस्तेमाल कहा जा सकता है लेकिन क्या एक ऐसे देश जिसका राष्ट्रपति एक महिला हो ,फिर भी एक लड़की को प्रतारित कर उसे मौत को गले लगाने वाले को 19 वषों बाद भी सजा ना हो ,न्यूज़ चेनलों के ऑफिस में एक महिला का बेदर्दी से अपमान किया जाय और महिला आयोग के नोटिस को कोई महत्व न्यूज़ चेनलों द्वारा नहीं दिया जाय, निश्चय कि यह देश और देश के महिला राष्ट्रपति के लिए भी शर्मनाक स्थिति है /

आज देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सूचना के अधिकार के तहत लाने के लिए याचिका का सहारा लेना पड़ता है जो न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था के लिए कदापि आदर्श स्थिति नहीं कहा जा सकता / आदर्श स्थिति तो वह होता जब इस तरह कि याचिका के स्वीकार होते ही देश के मुख्य न्यायाधीश याचिकाकर्ता को स्वयं पत्र लिखकर ,यह जवाब देते कि "आपने हमें एक अच्छी सलाह दी है और इस पर बिना बहस के ही मैं देश और जनता में पारदर्शिता लाने के लिए इसे तहे दिल से स्वीकार कर रहा हूँ " लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा ना होकर जनहित के फैसले के खिलाप सवोच्च न्यायालय द्वारा ही याचिका दायर कि गयी है / क्या यही है पंच परमेश्वर का सिधांत कि जनता पर लागु हो लेकिन पंच पर नहीं ? होना तो यह चाहिए कि जनता के निजी बातों को सूचना के दायरे से बाहर रखा जाता तो सही लेकिन न्यायाधीशों के निजी बातों को जानने का भी हक़ जनता को दिया जाना चाहिए / क्योंकि न्यायाधीशों का उच्च चरित्र का होना बहुत ही जरूरी है / अगर कोई न्यायाधीश भ्रष्टाचार में लिप्त होकर एक पत्नी के रहते हुए सुरा-सुन्दरी से खेलता है ,तो निश्चय ही यह किसी भी न्यायिक व्यवस्था के लिए पतन का कारण माना जायेगा / आज न्यायाधीशों के चरित्र पर ध्यान देना बेहद जरूरी है / 

आज देश में चारों तरफ कानून का पालन करने वालों को सताया या प्रतारित किया जाता है / कानून या कानून कि किसी भाषा को नहीं पढने वाले तथा उसे एक कमजोर व्यक्ति द्वारा अपनाया जाने वाली वस्तु मानने वाले लोगों पर, कोई भी किसी प्रकार के आरोपों पर हमारे देश में इतनी बड़ी पुलिस व्यवस्था,इतना बड़ा सुरक्षा एजेंसियों का जमावारा ,ह़र विभाग में उस विभाग का सतर्कता विभाग के होते हुए भी जाँच को जल्द से जल्द पूरा कर दोषियों को सजा नहीं दिया जाता / गोपनीय जानकारियां आम इमानदार जनता को तो नहीं बताई जाती ,लेकिन देश के गद्दारों तक बड़ी आसानी से पहुँच जाती है ,और क्या मजाल कि कोई कुछ बोल पाए /

देश में कानून व्यवस्था को लागू करने वाले लोग कानून को तोरने और बेचने कि सलाह अपराधियों और आसामाजिक तत्वों को देकर मोटी सरकारी तनख्वाह मिलने के बाबजूद रिश्वत से अपना घर और गोदाम भर रहें हैं / आखिर क्या कर रही है देश कि सतर्कता और सुरक्षा एजेंसियाँ ? कहिं इनमे भी गद्दारों कि बहुतायत तो नहीं हो गयी है ?

आज दिल्ली जो भारत सरकार के ठीक नाक के नीचे है वहाँ भी ह़र सरकारी विभाग में खुले आम भर्ष्टाचार का खेल खेला जा रहा है चाहे वह DTC के बसों का खरीद का मामला हो , DDA के घोटालों कि जिसमे 15 सालों से बने मकानों को भी जनता को अलाट नहीं किया जाता ,वो सिर्फ इसलिए कि उसके अधिकारी चोरी से किसी को ब्लैक में बेचकर ड्रा में अलोटेड दिखा सके , जिस खेल में दिल्ली के कुछ बड़े मंत्री भी शामिल हैं या कॉमनवेल्थ से सम्बंधित प्रोजेक्ट / CAG कि आपत्तियों के बाबजूद मुख्यमंत्री या किसी मंत्री पर गाज क्यों नहीं गिर रही है ? कहिं ये खेल सुनियोजित ढंग से पूरे लोकतंत्र के ताना-वाना को तहस-नहस करने के तहत देश के गद्दारों और भ्रष्ट लोगों द्वारा तो नहीं खेला जा रहा है ? क्योंकि इतिहाश और सबूत गवाह है कि जब किसी भी देश में आवारा पूँजी का नंगा खेल होता है तो उस देश के ढांचा को अपूर्णीय क्षति होती है / इन सब बातों को देखते हुए देश के आम जनता का श्रधा और विश्वाश देश कि व्यवस्था से पूरी तरह उठता जा रहा है / लेकिन कहिं ऐसा ना हो कि एक दिन इस देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर से भी श्रधा और विश्वास उठ जाये / निश्चय ही वो दिन इस देश और देश के गणतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक होगा /