*RTI कानून और देश*
ये हमारा गणतंत्र /
जो बन गया है एक आतंकतंत्र /
पहले आम लोगों को असुरक्षित करो ,
फिर सुरक्षा का ढोंग धरो /
RTI कानून आया ,
लोगों के जानने के हक़ को जगाया /
भ्रष्ट लोगों को ये नहीं भाया ,
भ्रष्टाचारी नहीं आये बाज ,
निकालने लगे इस कानून कि खाल /
बैठे इस गणतंत्र के बन सरताज ,
चोर,उचक्के,गद्दार और चालबाज /
ये करते जनता के पैसे से अय्यासी ,
इनको नहीं पसंद कोई पूछे ऐसी-वैसी /
इन्होने चलायी है अब एक चाल ,
RTI कानून में हो संशोधन हर हाल /
अगर हुआ कोई संशोधन फ़िलहाल ,
मर जायेगा RTI कानून बेहाल /
इस गणतंत्र का क्या है हाल ,
मंत्री खुशहाल जनता फटेहाल /
जनता क्यों नहीं आती आगे ,
भागे चोर गद्दार पतली गली से पिछवारे /
अब तो एक ही कानून का सपना है ,
जिसे जनता को सड़कों पे ही बनाना है /
तब जाकर जनता होगी स्वतंत्र ,
और ये देश होगा असल गणतंत्र /
... बहुत खूब, प्रसंशनीय !!!
जवाब देंहटाएंवाकई चितंनीय हालात है। आरटीआई कानून जब लागू हुआ था, तब इसे देश का आइना बताया गया था। अब आइना ही बदलने की तैयारी है। जनता को जागना ही होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ढंग से पोल खोली आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी रचना.
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पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'
RTI क़ानून अभी तक कोई मिसाल नहीं दाग पाया है. मैंने जब-जब इसका फायदा लेने को गुहार लगाई, दस रुपैया जमा करके भी ज्यूँ की त्यूँ वापस लौट आई. सच कहा आपने अभी तक ये क़ानून बेकार साबित हुआ है.
जवाब देंहटाएंझा जी..... गणतंत्र नहीं 'गनतंत्र' कहिये....
जवाब देंहटाएंvery touching ,aab halat badal jana honge
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव पर कुछ खल रहा है कविता में झूठ नहीं बोलूँगा..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी रचना.
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